विवाह
विवाह का अर्थ है विशिष्ट ढंग से कन्या को ले जाना। परिणय यानी अग्नि की प्रदीक्षणा करना। पाणिग्रहण – यानी कन्या का हाथ पकड़ना।
ऋग्वेद के अनुसार विवाह का उद्देश्य गृहस्थ होकर देवों के लिए यज्ञ करना और संतानोपत्ति करना है।
विवाह के दो प्रमुख उद्देश्य है:
पत्नी पति को धार्मिक कृत्यों के लिए योग्य बनाती है।पत्नी पुत्र या पुत्री की माता बनती है । पुत्र नरक से उनकी रक्षा करते हैं – ऐसी मान्यता थी।
अच्छे वर के लक्षण क्या है?
अच्छा कुल, सत चरित्र, शुभ गुण, ज्ञान, और सुंदर स्वास्थ्य।
कन्या के चुनाव के बारे में शास्त्र क्या कहते हैं?
१. वह बुद्धिमती, सुंदर, सच्चरित्र, शुभ लक्षणों वाली और सुंदर स्वास्थ्य से युक्त हो। २. कन्या वर से छोटी होनी चाहिए। ३. कन्या भाईयों के बिना नही होनी चाहिए।
ब्राह्मणों के लिए २० वर्ष की अवस्था विवाह के लिए सामान्य अवस्था मानी जाती थी।
ऋग्वेद में उल्लेख है की कन्या सुंदर और आभूषित है तो वह स्वयं पुरुषों के झुंड में अपना मित्र ढूँढ लेती है यानी लड़कियाँ प्रौढ़ होने पर अपना पति स्वयं चुन लेती थी।
विवाह आठ प्रकार के कहे गए है:
ब्राह्म, प्राजापत्य, आर्ष, दैव, गांधर्व, आसुर, राक्षस, और पैशाच
1. पिता जब बहुमूल्य अलंकारो से सज्जित, रत्नों से मंडित कन्या, वेद पंडित और सच्चरित्र व्यक्ति को आमंत्रित कर देता है तो वह – ब्राह्म विवाह है। 2. पिता जब कन्या किसी पुरोहित को यज्ञ कराते समय दे तो वह दैव विवाह कहा जाता है। 3. एक या दो जोड़ा पशु लेकर कन्या दी जाए तो वह आर्ष विवाह कहा जाता है। 4. जब पिता वर वधु को मधु पर्क देकर यह कहता है कि तुम दोनों साथ ही साथ धार्मिक कृत्य करना, तो यह प्राजापत्य विवाह कहा जाता है। 5. वर द्वारा वधु के पिता को धन देकर विवाह करना आसुर विवाह कहा जाता है। 6. वर कन्या की आपसी सहमति से विवाह गांधर्व विवाह कहा जाता है। 7. सम्बन्धियों को मार कर, अपहरण कर कन्या से विवाह राक्षस विवाह कहा जाता है। 8. सोयी हुई कन्या से या बेसुध कन्या से सम्बंध बनाना पैशाच विवाह कहा जाता है।