उपनयन


उपनयन का अर्थ है आचार्य के पास ले जाना। दूसरे शब्दों में नए शिष्य को विद्या प्राप्त करने के लिए तैयार क़रना।

सारे संस्कारों में यह बहुत महत्व का संस्कार है। इसका मूल भारतीय और ईरानी है।

उपनयन एक संस्कार है जो उसके लिए किया जाता है जो विद्या पाना चाहता है।यह संस्कार गायत्री मंत्र देकर किया जाता है।

विद्या की चाह रखने वाला हाथ में काष्ठ ( समिधा) लेकर गुरु के पास जाता था और उसे शिष्य के रूप में लेने की प्रार्थना करता है।गुरु उसे समिधा अग्नि में समर्पित करने को कहता है।सांकेतिक रूप में यह अपने अहम का अग्नि में विसर्जन करना भी है।

वेदों के अनुसार एक वेद के अध्ययन के लिए १२ वर्ष की अवधि होती थी और चार वेदों के लिए ४८ वर्ष की। पिता भी पुत्र को पढ़ाता था और आम तौर पर विद्यार्थी गुरु के घर जाता था और उनके पास रहकर विद्या प्राप्त करता था।

अश्वलायन गृह सूत्र के अनुसार ब्राह्मण का उपनयन ८ वे वर्ष में, क्षत्रिय का ११ वर्ष में और वैश्य का १२ वर्ष में होता था।अलग अलग ग्रंथों में यह आयु अलग अलग दी गयी है।

ब्रह्मचारी दो वस्त्र पहनता था। ऊपर उत्तरीय और नीचे वासस ( धोती)।ब्राह्मण के लिए लाल रंग, क्षत्रिय के लिए मजीठ रंग और वैश्य के लिए हल्दी के रंग का अधोवस्त्र होता था।उत्तरीय के रूप में भेड़, मृग चर्म या सूत का वस्त्र पहना जाता था।ब्रह्मचारी को यज्ञोपवीत, मेखला और दंड धारण क़रना होता था।

दंड प्रतीक है– शास्त्रों की रक्षा का। यह छात्र का प्रण होता है कि वह ज्ञान परंपरा की रक्षा करेगा।

मेखला अधोवस्त्र पर बांधी जाती थी जो अलग अलग वर्ण के लिए अलग अलग थी।

विद्यार्थी यज्ञोपवीत के रूप में सूत्रों की डोरी, वस्त्र या कुश की रस्सी धारण करते हैं।

यज्ञोपवित में तीन सूत्र होते हैं, परएक सूत्र में नौ धागे ( तंतु) होते हैं।

देवल ने नौ तंतु के नौ देवताओं के नाम लिखे हैं – वे हैं ओमकार, अग्नि, नाग, सोम, पितर, प्रजापति, वायु, सूर्य और विश्वेदेव।

ब्रह्मचारी एक और गृहस्थ दो यज्ञोपवीत पहनता है।

स्त्रियों के उपनयन का भी हमें स्मृतियों में प्रमाण मिलता है। ब्रह्मवादिनियाँ यज्ञोपवीत पहनती थी।

यम ने लिखा है कि प्राचीन काल में स्त्रियों को भी मूँज का यज्ञोपवित पहनने का नियम था और वे वेद का अध्ययन करती थी। उनका छात्र जीवन रजस्वला होने पर पूरा हो जाता था।

विद्यार्थी को शिखा रखना अनिवार्य और भिक्षाटन क़रना पड़ता था।यज्ञोपवित के तीन सूत्र वेदत्रयी के प्रतीक है।

डॉ॰ चंद्रप्रकाश द्विवेदी

चंद्रप्रकाश द्विवेदी एक भारतीय अभिनेता, फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक हैं, जिन्हें 1991 के टेलीविजन महाकाव्य ' चाणक्य' के निर्देशन के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने राजनीतिक रणनीतिकार ' चाणक्य' की शीर्षक भूमिका भी निभाई और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बने।

Related Posts